‘पद्मसाधना’ एक सुन्दर योग मुद्राओं की शृंखला है, जिससे आप का स्वयं प्रेम और आनंद से खिल उठेगा!!!!~ श्री श्री रविशंकर
‘पद्म’ का अर्थ होता है कमल और साधना का अर्थ आपका‘प्रयास’| इसलिये इस अभ्यास को कमल के हलकेपन के जैसे बिना प्रयास के किया जाना चाहिए| साधना आसनपर बैठने के लिए एक सहज उपाय के जैसा है और कमल आपकी प्रतिभाओं को परत दर परत निखारने के जैसा| पद्मसाधना में आप योग मुद्राओं के द्वारा भीतर से खिल जायेंगे| आध्यात्मिक पथ पर प्रगति के लिए साधक को सही दिशा की आवश्यकता होती है| योग साधक के अभ्यास को गहन करने लिए लिए एक अमूल्य शस्त्र है “पद्मसाधना”|
'अगमा’ परंपरा में, देवी की गद्दी पाँच परतों से बनी हुई है,प्रत्येक परत हमारी साधना (योग अभ्यास) के एक पहलू का प्रतिनिधित्व करती है| पहली परत है कछुआ, जो स्थिरता का प्रतीक है| आसन के दौरान कछुए की तरह आसन को स्थिर रखें| दूसरी परत है सांप, जो सजगता का प्रतीक है| सजगता के बिना स्थिरता सुस्ती लाती है| इसलिए स्थिर रहें और साथ में सजग भी|तीसरी परत है सिंह| यह कृपा का प्रतीक है जिसे दो भागों में समझा जा सकता है| पहला शाही पहलू है; सिंह जो कुछ भी करता है उसमें वह प्रतापी होता है| दूसरा पहलू यह है कि सिंह उतना ही करता है जितना आवश्यक हो, वह शिकार करता है और फिर जब तक आवश्यक हो तब तक विश्राम करता है| यह कृपा की पहचान है| पद्मसाधना में बहुत ज्यादा प्रयास नहीं करें| जितना आवश्यक हो उतना ही करें|
चौथी परत है सिद्धि या उत्तमता| अपनी मुद्राओं को सिद्ध या उत्तम करें| जैसा आप नियमित रूप से अभ्यास करते हैं तो मुद्रा में उत्तमता या सिद्धि प्राप्त होती है| जिसका तात्पर्य है शारीरिक रूप से सही मुद्रा और मानसिक रूप से शांत मन| पांचवी परत है कमल; पूरी तरह से खिली हुई स्थिति और इस पर देवी बैठी है| दिव्यता, चेतना में निहित है, और इन पाँच पहलुओं की गद्दी पर बैठती है|आध्यात्मिक प्रगति करने के लिए साधक पद्मसाधना के इन पांच पहलुओं का विकास और अपने अभ्यास को गहन कर सकते हैं|
पद्मसाधना योग आसन, प्राणायाम और ध्यान की एक सुंदर शृंखला है, जिससे साधक अपने अभ्यास में गहन हो सकता है|आसन मुद्राएँ शरीर और मन को केंद्रित करते हैं और प्राणायाम तंत्र को उर्जायुक्त और शांत करता है, जिससे कोई गहन ध्यान में जा सके|
प्रश्न : पद्मसाधना का अभ्यास कैसे करें?
श्री श्री रविशंकर :प्रवाह के साथ चलें| पद्मसाधना में मुद्रा दर मुद्रा एक सुंदर प्रवाह के जैसे है| इसमें ऐसा लगता है जैसे पूरा अनुक्रम एक प्रक्रिया है; आसन, प्राणायाम, ध्यान सब एक में समाये हुए हैं| इस प्रक्रिया की प्रकृति ध्यानयुक्त होती है,इसलिए यह सबसे उत्तम होगा कि इसे सुदर्शन क्रिया करने से पूर्व किया जाये| योग आसान को धीरे धीरे करें जैसे यह भी एक ध्यान हो!उज्जई श्वास लें| आप योग आसान में उज्जई श्वास का उपयोग करें| इससे आप किसी मुद्रा में अधिक समय तक बने रह सकते हैं| हर आसान मे ३-४ श्वास लेने की अनुशंसा की जाती है|उज्जई श्वास को सौम्य रखना सबसे उत्तम है, और इसके लिए अधिक प्रयास करने की आवश्कता नहीं है|
समयबध्द रहें| यह पूरी शृंखला ४० मिनिट तक चलती है| १० मिनिट आसन, ५ मिनिट प्राणायाम, २० मिनिट ध्यान और ५ मिनिट प्राणायाम| इस क्रम में समयबध्द रहना सबसे उत्तम है|आसन में विश्राम करें| हर एक आसन में एक मुद्रा में ३०-४० सेकंड तक रहें| यदि आप उज्जई श्वास ले रहे हैं तो उसका अर्थ है कि ३-४ उज्जई श्वास| आपइसका प्रयोग करते हुए निर्णय ले सकते हैं कि आपको एक मुद्रा मे कितनी श्वास लेनी है, जिससे आप यह पूरी आसन की शृंखला को १० मिनिट में समाप्त कर सकें|
“स्थिरं सुखं आसनं”| आसन मे सौम्य और ध्यानयुक्त होना है इसे याद रखें| योग आसन का उद्देश्य किसी भी चिंता को मुक्त करना होता है, जिससे शरीर ध्यान के लिए तैयार हो सके|महर्षि पातंजलि अपने योग सूत्र में कहते हैं "स्थिरं सुखं आसनं" स्थिरं का अर्थ है स्थिरता| सुखं का अर्थ है आनंद| महर्षि पातंजलि कहते हैं कि आसन मे स्थिर बने रहें और आसन का आनंद लेते हुए मुस्कुराते हुए योग करें|प्राणायाम पर केंद्रित रहें|
पद्मसाधना के दौरान नाड़ी शोधन प्राणायाम करें| नाड़ी शोधन प्राणायाम नाड़ीयों का संतुलन बनाने मे सहायक है जिससे यह ध्यान में जाने और उसमे से निकलने का आसान उपाय सिद्ध होता है|सरलता से ध्यान में जाएँ|पद्मसाधना के दौरान हम 'सहज समाधि' ध्यान का उपयोग करते हैं| पद्मसाधना को अपनी प्रातःकाल और सायंकाल की योग साधना का अनिवार्य हिस्सा बनाएं।