Yogic forceful breathing

कपालभाति

कपालभाती एक यौगिक क्रिया मानी जाती है जो
शरीर के विशिष्‍ट भागों के विजातीय तत्‍वों को बाहर
निकाल कर शरीर को स्वच्छ बनाती है ।
संस्कृत शब्द कपाल का अर्थ है ‘माथा’ और
भा‍ति का अर्थ है ‘चमकना’ । कपालभाति मस्तिष्क
के अग्रभाग को दोष मुक्‍त करने में सहायक होता है ।
आइए, नीचे दिए गए चरणों का अनुसरण करते हुए कपालभा‍ति करें —

प्रारंभिक स्थिति — पदमासन, अर्धपदमासन या
वज्रासन में सीधे बैठें ।

1. नासाछिद्रों (नथनों) द्वारा गहरा श्‍वास लें ।
2. अब उदरीय मांसपेशियों को संकुचित करते हुए बल लगाकर श्‍वास बाहर निकालें ।
श्‍वास लेने की कि्रया में कोई प्रयास न करें । यह कपालभा‍ति का एक प्रयास है ।
एक बार में इस प्रकार के 10 प्रयासों के साथ शुरू
करें । यह एक चक्र है । आप एक सत्र में एक से तीन चक्रों का अभ्यास कर सकते हैं । जो शरीर के विशिष्‍ट भागों के विजातीय तत्‍वों को बाहर
निकाल कर शरीर को स्वच्छ बनाती है ।

निम्नलिखित बिंदुओ को याद रखें —
क्‍या करें क्‍या न करें

• श्‍वास छोड़ने के लिए बल लगाएँ और
श्‍वास को अदर स्वत: आने दें ।
• केवल श्‍वास छोड़ने पर ध्यान केंद्रित करें ।
• श्‍वास छोड़ते समय उदर की मांसपेशियों को सिकोड़ें ।
• श्‍वास छोड़ते समय छाती या कंधों को हिलाएँ नहीं ।
• चेहरे को विकृत न करें ।

लाभ

• यह क्रिया उदरीय क्षेत्र के स्नायओु को उददीप्त करती है, उदरीय मांसपेशियों को
स्‍वस्‍थ करती है और पाचन में सुधार करती है ।
• कपालभा‍ति फेफड़ों से कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य अपश‍िष्‍ट गैसों को बाहर निकालती है ।
• यह हृदय और फे फड़ों की क्षमता में सधुार करती है इसलिए यह श्‍वसन संबंधी रोगों, जैसे अस्थमा के लिए अच्छी है ।
• यह आलस्य दरू करती है ।

सीमाएँ

हृदय संबंधी समस्याओ, उच्च रक्‍तचाप, हर्निया, चक्कर आना और गैस्ट्रिक अल्सर से पीडित ‍ व्‍यक्‍त‍ियों को कपालभा‍ति का अभ्यास नहीं करना चाहिए ।